दिल्ली के स्कूलों में बच्चों को हो रही Eye Weakness की असली वजह

आंखें हमारे जीवन की सबसे कीमती इंद्रियों में से एक हैं — ये न सिर्फ हमें दुनिया देखने की क्षमता देती हैं, बल्कि सीखने, समझने और अनुभव करने का ज़रिया भी हैं। लेकिन आजकल छोटे बच्चों में तेजी से eye weakness यानी आंखों की कमजोरी बढ़ रही है, जिसका मुख्य कारण है घंटों मोबाइल, टैबलेट और टीवी स्क्रीन पर समय बिताना। पढ़ाई के बढ़ते दबाव के साथ-साथ Outdoor Activities की कमी, नींद की कमी और पोषण की अनदेखी भी इस समस्या को और गंभीर बना रही है। माता-पिता अक्सर शुरुआत में इसे नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे बच्चों की नजर धीरे-धीरे और कमजोर होती जाती है। इसलिए यह जरूरी है कि बच्चों की आंखों की नियमित जांच कराई जाए, उन्हें स्क्रीन टाइम से ब्रेक दिलाया जाए और आँखों के लिए जरूरी विटामिन्स और न्यूट्रिशन युक्त डाइट दी जाए – ताकि उनकी दृष्टि तेज़ बनी रहे और वो दुनिया को पूरी खूबसूरती से देख सकें।

क्या आपके बच्चे की आंखें हर साल कमज़ोर हो रही हैं? क्या वो चश्मा पहनने के लिए मजबूर हो रहा है, सिर्फ 5वीं क्लास तक आते-आते?

यह कोई संयोग नहीं है। दिल्ली के स्कूलों में Eye Weakness in Children अब एक आम बात बन चुकी है — और इसके पीछे की वजहें जितनी खतरनाक हैं, उतनी ही अनदेखी भी की जाती हैं।

आंकड़ों की हकीकत:

  • AIIMS की रिपोर्ट (2024): दिल्ली-एनसीआर के 7 से 15 वर्ष के बच्चों में से 61% को आँखों की समस्या पाई गई।
  • 2010 में यह आंकड़ा सिर्फ 21% था।
  • यानी पिछले 10 सालों में आंखों की बीमारियाँ तीन गुना बढ़ गई हैं।

असली वजहें क्या हैं?

1. Screen Time का बम!

  • बच्चे आज औसतन 7 से 9 घंटे तक स्क्रीन (मोबाइल, टैबलेट, स्मार्टबोर्ड, टीवी) पर होते हैं।
  • इससे Digital Eye Strain और Myopia (निकट दृष्टि दोष) बहुत तेज़ी से बढ़ता है।

2. Pollution: आँखों के लिए धीमा ज़हर

  • दिल्ली की जहरीली हवा में मौजूद PM 2.5 और NO2 आँखों की नमी को खत्म कर देते हैं।
  • इसका नतीजा: ड्राई आई सिंड्रोम, इरिटेशन, लालपन और विज़न ब्लर।

3. Artificial Light Exposure

  • स्कूलों में लगातार LED और फ्लोरेसेंट लाइट की एक्सपोज़र से मेलाटोनिन हार्मोन का बैलेंस बिगड़ता है।
  • आंखों की थकान और नींद की कमी से रेटिना पर असर पड़ता है।

4. Homework और Stress

  • लगातार पढ़ाई, मोबाइल ऐप्स और एजुकेशन टूल्स का अत्यधिक उपयोग आंखों पर दबाव डालता है।

बच्चों के मानसिक विकास पर असर:

आंखों की कमजोरी सिर्फ देखने तक सीमित नहीं रहती, ये बच्चों के पूरे मानसिक विकास पर गहरा असर डालती है — एक ऐसा असर जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। जब कोई बच्चा साफ़ नहीं देख पाता, तो उसकी academic performance, mental focus और learning ability सीधा प्रभावित होती है। धीरे-धीरे उसका self-confidence गिरने लगता है, और वो खुद को दूसरों से कम समझने लगता है। खासकर जब उसे कम उम्र में चश्मा पहनना पड़ता है, तो स्कूल में उसे शर्मिंदगी, तानों और मज़ाक का सामना करना पड़ता है। यह केवल आंखों की नहीं, आत्मा की चोट होती है — जहां बच्चा खुद को समाज के मापदंडों से कमतर मानने लगता है। ये मानसिक दबाव उसकी emotional growth को भी रोक सकता है, जिससे वह खुद में सिमटने लगता है। सोचिए, एक बच्चा जो अपने सपनों को साफ़ देख ही नहीं पा रहा — वो उन्हें पूरा कैसे करेगा? यही कारण है कि बच्चों की vision health को केवल एक शारीरिक समस्या न मानकर, उसे एक psycho-social issue की तरह समझना और संभालना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

  • Eye Weakness से बच्चों का Self-Confidence, Academic Performance और Mental Focus कमजोर होता है।
  • चश्मा पहनने वाले बच्चों को अक्सर स्कूल में ताने, शर्मिंदगी या मज़ाक का शिकार होना पड़ता है।

क्या भविष्य और भी डरावना है?

वर्षबच्चों में दृष्टि दोष (%)स्क्रीन टाइम औसत
201528%3 घंटे/दिन
202045%6 घंटे/दिन
202461%8-9 घंटे/दिन
2027* अनुमानित74%10 घंटे/दिन

WHO का अनुमान है:

2050 तक दुनिया की आधी आबादी Myopia (eye number) से पीड़ित हो सकती है।

समाधान और बचाव:

  • हर 20 मिनट के स्क्रीन यूज़ के बाद 20 सेकेंड तक दूर देखें (20-20-20 Rule)
  • बच्चों को Vitamin A से भरपूर डाइट दें – गाजर, पालक, आंवला
  • रोज़ सुबह खुली हवा में 30 मिनट टहलने भेजें
  • सोने से 1 घंटा पहले स्क्रीन बंद करें
  • Blue Light Glasses का इस्तेमाल स्कूल और पढ़ाई के समय

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निष्कर्ष: सिर्फ चश्मा बदलने से कुछ नहीं बदलेगा

अगर आज हमने बच्चों की आंखों की सुरक्षा नहीं की, तो कल उन्हें सिर्फ चश्मे ही नहीं, Retina Surgery, Lasik और यहां तक कि Vision Loss जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

अब वक्त है चेतने का। बच्चों को सिर्फ नंबर नहीं, सही नजर और नज़रिए की ज़रूरत है।

बच्चों की आंखों की सेहत पर विशेषज्ञों की राय और दिशा-निर्देश जानें: AIOS – All India Ophthalmological Society

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